सुख के साथी तुम, तो दुख का कौन?
हँसी में तुम तो गम में कौन?
मेरे तो तुम्ही सब कुछ
गीता और रामायण भी तुम
अगला जन्म भी तुम
शब्द भी तुम
अर्थ भी तुम
सवाल भी जवाब भी तुम
भागो, किंतु जाओगे कहाँ
तुम्हारे भीतर की आँखें जो मेरी है
करेंगी पीछा तुम्हारा
भटकते रहोगे तुम
खुशी की चाह में
परबत/दरिया और मरुथल
पर मत भूलो कि कडी धूप में
तुम्हारे लिये पानी की पहली बूँद
फिर मैं ही हूँ।
*** रितु रंजन प्रसाद
7 comments:
"अगला जन्म भी तुम
शब्द भी तुम
अर्थ भी तुम
सवाल भी जवाब भी तुम
भागो, किंतु जाओगे कहाँ
तुम्हारे भीतर की आँखें जो मेरी है
करेंगी पीछा तुम्हारा"
बहुत ही प्यारे ख्याल हैं, खूबसूरत भाव और उन्क उतना ही सुन्दर चित्र
"परबत"... वाह!, देशज शब्दों के प्रयोग कविता को काफी अपना सा बना लेते हैं
और एक बार फिर सम्पूर्ण और अति प्रभावी अंत
"कडी धूप में
तुम्हारे लिये पानी की पहली बूँद
फिर मैं ही हूँ।"
रितु जी, बहुत ही सुन्दर कविता एक बार फिर
आपको पढना सुखद है
साभार
गौरव शुक्ल
साथी हो तो साथ दो
सुख के साथी तुम, तो दुख का कौन?
हँसी में तुम तो गम में कौन?
रितु जी,
प्रश्नो के साथ कविता का प्रारंभ बहुत हीं भा गया।
किंतु जाओगे कहाँ
तुम्हारे भीतर की आँखें जो मेरी है
करेंगी पीछा तुम्हारा
भटकते रहोगे तुम
खुशी की चाह में
परबत/दरिया और मरुथल
पर मत भूलो कि कडी धूप में
तुम्हारे लिये पानी की पहली बूँद
फिर मैं ही हूँ।
एक साँस में पढी गई इबादत जैसी ये पंक्तियाँ हजारों सवाल करती हैं। आप लाख कहें , लेकिन आप इस क्षेत्र में नई नहीं लगती । मंझी हुई कवयित्री लगती हैं आप। :)
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
"मेरे तो तुम्ही सब कुछ
गीता और रामायण भी तुम
अगला जन्म भी तुम
शब्द भी तुम
अर्थ भी तुम
सवाल भी जवाब भी तुम"
कविता के भावों में जो समर्पण है, जो अपनत्व है, जो दर्शन है वह अनन्य है।
काश, ऐसा विश्वास, ऐसी भावना सबको मिले।
इस सुन्दर कविता पर मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई।
अपनत्व व प्यार का सुंदर पर्द्शन...
बहुत अच्छी कविता..
खास कर...
मेरे तो तुम्ही सब कुछ
गीता और रामायण भी तुम
परबत/दरिया और मरुथल
पर मत भूलो कि कडी धूप में
तुम्हारे लिये पानी की पहली बूँद
फिर मैं ही हूँ।
"pr mt bhoolo k karhi dhoop mei tumhare liye paani ki pehli boond phir maiN hi hooN..." Waah !
kavita mei vishwaas aur smarpan.bhaav saaf nazar aa rahe haiN. Shilp ki drishti se bhi kavita bahot achhi bn parhi hai.
badhaaee.
---MUFLIS---
Bahut Badhiya Peshkas hai.
रीतु जी बहुत सुन्दर सवाल भी तुम जबाब भी तुम ऐसा भाव जब मनुष्य के मन में उठने लगे तो समझो वह अपनी उस यात्रा की तैयारी में जहां के लिए हमें यह मानव तन प्राप्त हुआ है इन भावों को कायम रखना जय श्री कृष्ण
http://jatshiva.blogspot.com/
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