Saturday, October 27, 2007


सफल हो कर तुम दिखलाओ

अडचने तो आती हैं राह में
आगे बढ कर दिखलाओ
गलत राह पर अगर चलोगे
काँटे ही होंगे राहों में
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा

भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंगे

जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...

*** रितु रंजन प्रसाद

37 comments:

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

ये रितु रंजन करने वालीं
मैं अमोहा कहाँ रहुँगा
नवकदमों कि चाप नही है
यही कहुँगा यही कहुँगा
बिम्ब सूर अरु चन्द्र छवि के
क्या लक्षण ये नये कवि के
मेरा मन, कैसे समझाऊँ ?
किन शब्दों से बांधूँ तुमको
मैं बलिहारी शीश नवाऊँ

अभिषेक सागर said...

अच्छी कविता....

खास कर

"अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे"

रश्मि प्रभा... said...

वाह!
इसे कहते हैं शब्दों की अद्भुत ताकत......
बहुत ही अच्छा लगा .

pallavi trivedi said...

bahut achchi lagi aapi rachna....sundar.

tarun mishra said...

जय श्री गुरुवे नमःसोचो जिसने तुम्हें सुंदर सृष्टि दी , जो किसी भी प्रकार से स्वर्ग से कम नहीं है , आश्चर्य ! वहां नर्क (Hell) भी है । क्यों ? नर्क हमारी कृतियों का प्रतिफलन है । हमारी स्वार्थ भरी क्रियाओं मैं नर्क को जन्म दिया है । हमने अवांछित कार्यों के द्वारा अपने लिए अभिशाप की स्थिति उत्पन्न की है । स्पष्ट है कि नर्क जब हमारी उपज है , तोइसे मिटाना भी हमें ही पड़ेगा । सुनो कलियुग में पाप की मात्रा पुण्य से अधिक है जबकि अन्य युगों में पाप तो था किंतु सत्य इतना व्यापक था कि पापी भी उत्तमतरंगों को आत्मसात करने की स्थिति में थे । अतः नर्क कलियुग के पहले केवल विचार रूप में था , बीज रूप में था । कलियुग में यह वैचारिक नर्क के बीजों को अनुकूल और आदर्श परिस्थितियां आज के मानव में प्रदान कीं। शनै : शनैः जैसे - जैसे पाप का बोल-बालहोता गया ,नर्क का क्षेत्र विस्तारित होता गया । देखो । आज धरती पर क्या हो रहा है ? आधुनिक मनुष्यों वैचारिक प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि हुयी है । हमारे दूषित विचार से उत्पन्न दूषित ऊर्जा ( destructive energy ) , पाप - वृत्तियों की वृद्धि एवं इसके फलस्वरूप आत्मा के संकुचन द्वारा उत्त्पन्न संपीडन से अवमुक्त ऊर्जा , जो निरंतर शून्य (space) में जा रही है , यही ऊर्जा नर्क का सृजन कर रही है , जिससे हम असहाय होकर स्वयं भी झुलस रहे हैं और दूसरो को भी झुलसा रहे हें । ज्ञान की अनुपस्थिति मैं विज्ञान के प्रसार से , सृष्टि और प्रकृति की बहुत छति मनुष्य कर चुका है । उससे पहले की प्रकृति छति पूर्ति के लिए उद्यत हो जाए हमें अपने- आपको बदलना होगा । उत्तम कर्मों के द्वारा आत्मा के संकुचन को रोकना होगा , विचारों में पवित्रता का समावेश करना होगा । आत्मा की उर्जा जो आत्मा के संपीडन के द्वारा नष्ट होकर नर्क विकसित कर रही है उसको सही दिशा देने का गुरुतर कर्तव्य तुम्हारे समक्ष है ताकि यह ऊर्जा विकास मैं सहयोगी सिद्ध हो सके । आत्मा की सृजनात्मक ऊर्जा को जनहित के लिए प्रयोग करो । कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा । नर्क की उष्मा मद्धिम पड़ेगी और व्याकुल सृष्टि को त्राण हासिल होगा । आत्म - दर्शन (स्वयं का ज्ञान ) और आत्मा के प्रकाश द्वारा अपना रास्ता निर्धारित करना होगा । आसान नहीं है यह सब लेकिन सृष्टि ने क्या तुम्हें आसन कार्यों के लिए सृजित किया है ? सरीर की जय के साथ - साथ आत्मा की जयजयकार गुंजायमान करो । सफलता मिलेगी । सृष्टि और सृष्टि कर्ता सदैव तुम्हारे साथ है । प्रकृति का आशीर्वाद तुम्हारे ऊपर बरसेगा । *****************जय शरीर । जय आत्मा । । ******************

samagam rangmandal said...

बहूत बढिया।उत्साहवर्धक।आभार

admin said...

बहुत दिनों बाद आपकी कविता पढने को मिली, अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।

समयचक्र said...

उत्साहवर्धक,बहुत बधाई.

समयचक्र said...

उत्साहवर्धक,बहुत बधाई.

Satish Saxena said...

कुहू का कोना खाली क्यों ?

sudhakar soni,cartoonist said...

bahut achchi lagi aapki rachna....sundar.

Unknown said...

Very good......

योगेन्द्र मौदगिल said...

अद्भुत भाव-बोध..
साधुवाद..

Advocate Rashmi saurana said...

फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
kya baat hai Ritu ji. aapki rachna pahali baar padh rhi hu. very nice poem. likhati rhe.

Anonymous said...

अच्छी कविता...

खास कर.....

फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा

makrand said...

जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...

bahut sunder
regards

cartoonist ABHISHEK said...

रितु जी
कविता अच्छी है.
ठीक बात कही है आपने.."जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें.."
सफलता पाने के लिए नींद की
कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है...
'रंजन युगल' वाकई खूब लिख पढ़ रहे हें...साहित्य शिल्पी पर मेहनत तो दिख ही रही है..आप लोग खूब नाम कमायें...
शुभकामनायें.

प्रदीप मानोरिया said...

जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ.
सुंदर शब्द से गठित मार्गदर्शी कविता बधाई स्वीकारें
मेरी नई रचना "शेयर बाज़ार पढने हेतु आपको सादर अपने इष्ट मित्रों सहित आमंत्रण है कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें और जाते जाते अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करें <> स्वागत है

rakhshanda said...

अच्छी कविता है..लिखती रहें...

श्यामल सुमन said...

रितु जी,

काँटे ही होंगे राहों में
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ

बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं। बधाई। अपनी एक रचना से दो पंक्तियाँ-

हहाकार से लडना होगा, किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको, काँटों बीच गुजरना होगा।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

मोहन वशिष्‍ठ said...

आपकी कविता को पढकर महाकवि श्री वाजपेयी जी की कविता दिमाग में घूम गई उनकी कविता भी प्रेरणादायक होती हैं ओर आपकी कविता में भी वो झलक शत प्रतिशत दिखाई दी बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है आपने बधाई हो

महावीर said...

एक सशक्त और प्रेरणादायक रचना है।

Akanksha Yadav said...

फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
..........बड़ी बेहतरीन कविता है, बधाई स्वीकारें !!

vijay kumar sappatti said...

aapki ye nazm acchi lagi , man ke bhavo ko darshati hai .

bahut accha likhti hai aap

bahut badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

Varun Kumar Jaiswal said...

सपनों की गहरे में कलम को डुबाकर लिखा है |
अतिउत्तम |

समयचक्र said...

रंगों के पर्व होली के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक शुभकामनाये

vijaymaudgill said...

फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा

बहुत अच्छी लगी आपकी कविता।

हरि said...

देश और समाज को ऐसी ही प्रेरणा आपके शब्‍दों से मिलती रहे।

मीत said...

कमाल है यकीन नहीं होता.....
क्योंकि उसदिन कुछ सुना नहीं था...
आवाक...
मीत

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!

shiva jat said...

अति सुन्दर दिल खुश हो गया क्या कहना
अपनी ही तुम कलम उठाओ इस सहज से संदेश से ही व्यक्ति की दुनिया बदल सकती है
धन्यवाद आप मेरा भी ब्लोग पढकर देखना की क्या हम भी कुछ लिखने के काबिल हैं
http://jatshiva.blogspot.com/

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आप को बधाई

....है तेरे साथ अगर तेरे इरादों का जुनूँ
काफ़िला है तू अभी ख़ुद को अकेला न समझ

M VERMA said...

अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
कितना मुश्किल है अपनी परिभाषा लिख पाना

कविता रावत said...

भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंगे

Bahut sundar abhivakti.
Badhai sweekare.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut achchi lagi yeh kavita......

निर्मला कपिला said...

जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...
रितु जी बहुत सुन्दर प्रेरक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

निर्मला कपिला said...

भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंग
बहुत सुन्दर शुभकामनायें