सफल हो कर तुम दिखलाओ
अडचने तो आती हैं राह में
आगे बढ कर दिखलाओ
गलत राह पर अगर चलोगे
काँटे ही होंगे राहों में
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंगे
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...
*** रितु रंजन प्रसाद
37 comments:
ये रितु रंजन करने वालीं
मैं अमोहा कहाँ रहुँगा
नवकदमों कि चाप नही है
यही कहुँगा यही कहुँगा
बिम्ब सूर अरु चन्द्र छवि के
क्या लक्षण ये नये कवि के
मेरा मन, कैसे समझाऊँ ?
किन शब्दों से बांधूँ तुमको
मैं बलिहारी शीश नवाऊँ
अच्छी कविता....
खास कर
"अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे"
वाह!
इसे कहते हैं शब्दों की अद्भुत ताकत......
बहुत ही अच्छा लगा .
bahut achchi lagi aapi rachna....sundar.
जय श्री गुरुवे नमःसोचो जिसने तुम्हें सुंदर सृष्टि दी , जो किसी भी प्रकार से स्वर्ग से कम नहीं है , आश्चर्य ! वहां नर्क (Hell) भी है । क्यों ? नर्क हमारी कृतियों का प्रतिफलन है । हमारी स्वार्थ भरी क्रियाओं मैं नर्क को जन्म दिया है । हमने अवांछित कार्यों के द्वारा अपने लिए अभिशाप की स्थिति उत्पन्न की है । स्पष्ट है कि नर्क जब हमारी उपज है , तोइसे मिटाना भी हमें ही पड़ेगा । सुनो कलियुग में पाप की मात्रा पुण्य से अधिक है जबकि अन्य युगों में पाप तो था किंतु सत्य इतना व्यापक था कि पापी भी उत्तमतरंगों को आत्मसात करने की स्थिति में थे । अतः नर्क कलियुग के पहले केवल विचार रूप में था , बीज रूप में था । कलियुग में यह वैचारिक नर्क के बीजों को अनुकूल और आदर्श परिस्थितियां आज के मानव में प्रदान कीं। शनै : शनैः जैसे - जैसे पाप का बोल-बालहोता गया ,नर्क का क्षेत्र विस्तारित होता गया । देखो । आज धरती पर क्या हो रहा है ? आधुनिक मनुष्यों वैचारिक प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि हुयी है । हमारे दूषित विचार से उत्पन्न दूषित ऊर्जा ( destructive energy ) , पाप - वृत्तियों की वृद्धि एवं इसके फलस्वरूप आत्मा के संकुचन द्वारा उत्त्पन्न संपीडन से अवमुक्त ऊर्जा , जो निरंतर शून्य (space) में जा रही है , यही ऊर्जा नर्क का सृजन कर रही है , जिससे हम असहाय होकर स्वयं भी झुलस रहे हैं और दूसरो को भी झुलसा रहे हें । ज्ञान की अनुपस्थिति मैं विज्ञान के प्रसार से , सृष्टि और प्रकृति की बहुत छति मनुष्य कर चुका है । उससे पहले की प्रकृति छति पूर्ति के लिए उद्यत हो जाए हमें अपने- आपको बदलना होगा । उत्तम कर्मों के द्वारा आत्मा के संकुचन को रोकना होगा , विचारों में पवित्रता का समावेश करना होगा । आत्मा की उर्जा जो आत्मा के संपीडन के द्वारा नष्ट होकर नर्क विकसित कर रही है उसको सही दिशा देने का गुरुतर कर्तव्य तुम्हारे समक्ष है ताकि यह ऊर्जा विकास मैं सहयोगी सिद्ध हो सके । आत्मा की सृजनात्मक ऊर्जा को जनहित के लिए प्रयोग करो । कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा । नर्क की उष्मा मद्धिम पड़ेगी और व्याकुल सृष्टि को त्राण हासिल होगा । आत्म - दर्शन (स्वयं का ज्ञान ) और आत्मा के प्रकाश द्वारा अपना रास्ता निर्धारित करना होगा । आसान नहीं है यह सब लेकिन सृष्टि ने क्या तुम्हें आसन कार्यों के लिए सृजित किया है ? सरीर की जय के साथ - साथ आत्मा की जयजयकार गुंजायमान करो । सफलता मिलेगी । सृष्टि और सृष्टि कर्ता सदैव तुम्हारे साथ है । प्रकृति का आशीर्वाद तुम्हारे ऊपर बरसेगा । *****************जय शरीर । जय आत्मा । । ******************
बहूत बढिया।उत्साहवर्धक।आभार
बहुत दिनों बाद आपकी कविता पढने को मिली, अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।
उत्साहवर्धक,बहुत बधाई.
उत्साहवर्धक,बहुत बधाई.
कुहू का कोना खाली क्यों ?
bahut achchi lagi aapki rachna....sundar.
Very good......
अद्भुत भाव-बोध..
साधुवाद..
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
kya baat hai Ritu ji. aapki rachna pahali baar padh rhi hu. very nice poem. likhati rhe.
अच्छी कविता...
खास कर.....
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...
bahut sunder
regards
रितु जी
कविता अच्छी है.
ठीक बात कही है आपने.."जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें.."
सफलता पाने के लिए नींद की
कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है...
'रंजन युगल' वाकई खूब लिख पढ़ रहे हें...साहित्य शिल्पी पर मेहनत तो दिख ही रही है..आप लोग खूब नाम कमायें...
शुभकामनायें.
जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ.
सुंदर शब्द से गठित मार्गदर्शी कविता बधाई स्वीकारें
मेरी नई रचना "शेयर बाज़ार पढने हेतु आपको सादर अपने इष्ट मित्रों सहित आमंत्रण है कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें और जाते जाते अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करें <> स्वागत है
अच्छी कविता है..लिखती रहें...
रितु जी,
काँटे ही होंगे राहों में
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं। बधाई। अपनी एक रचना से दो पंक्तियाँ-
हहाकार से लडना होगा, किलकारी से भरना होगा।
सुमन चाहिए अगर आपको, काँटों बीच गुजरना होगा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
आपकी कविता को पढकर महाकवि श्री वाजपेयी जी की कविता दिमाग में घूम गई उनकी कविता भी प्रेरणादायक होती हैं ओर आपकी कविता में भी वो झलक शत प्रतिशत दिखाई दी बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने बधाई हो
एक सशक्त और प्रेरणादायक रचना है।
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
..........बड़ी बेहतरीन कविता है, बधाई स्वीकारें !!
aapki ye nazm acchi lagi , man ke bhavo ko darshati hai .
bahut accha likhti hai aap
bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
सपनों की गहरे में कलम को डुबाकर लिखा है |
अतिउत्तम |
रंगों के पर्व होली के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक शुभकामनाये
फूल अगर तुमको पाना है
सच्चाई से राह बनाओ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता।
देश और समाज को ऐसी ही प्रेरणा आपके शब्दों से मिलती रहे।
कमाल है यकीन नहीं होता.....
क्योंकि उसदिन कुछ सुना नहीं था...
आवाक...
मीत
सुन्दर!
अति सुन्दर दिल खुश हो गया क्या कहना
अपनी ही तुम कलम उठाओ इस सहज से संदेश से ही व्यक्ति की दुनिया बदल सकती है
धन्यवाद आप मेरा भी ब्लोग पढकर देखना की क्या हम भी कुछ लिखने के काबिल हैं
http://jatshiva.blogspot.com/
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आप को बधाई
....है तेरे साथ अगर तेरे इरादों का जुनूँ
काफ़िला है तू अभी ख़ुद को अकेला न समझ
अपनी ही तुम कलम उठाओ
और लिखो अपनी परिभाषा
कितना मुश्किल है अपनी परिभाषा लिख पाना
भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंगे
Bahut sundar abhivakti.
Badhai sweekare.
bahut achchi lagi yeh kavita......
जीना क्या पोली उम्मीदें
आँखें खोलो भूलो नींदें
अंत हरईक मुश्किल का होगा
संदल बन कर तुम दिखलाओ
सफल हो कर तुम दिखलाओ...
रितु जी बहुत सुन्दर प्रेरक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
भटक गये जो राह कभी तुम
नही संभल फिर पाओगे
दाग लगी चूनर को तुम
किस दरिया में धो आओगे
ख्वाब कब्र फिर बन जायेंगे
आँसू बन फिर बह जायेंग
बहुत सुन्दर शुभकामनायें
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